राखी की तीन कहानियां Three stories of Rakhi

सबसे पहले आप सभी को भाई – बहन से इस शुभ त्योहार रक्षाबंधन के अवसर की हार्दिक शुभकामनाए। मैं Actualpost.com राखी की तीन सबसे प्रसिद्ध कहानिया share कर रहा हु। शुरुआत से ही एक सवाल मन मे उठता है की आखिरकार यह राखी का त्योहार क्यो मनाया जाता है? इस त्योहार को मनाने के पीछे कोई ठोस कारण तो पता नहीं है लेकिन अलग-अलग जगहो पर इस त्योहार के बारे मे बताया गया है।

पहली कहानी:-

राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की। एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।

दूसरी कहानी :-

देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

तीसरी कहानी :-

स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।
कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

अनेक साहित्यिक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ ‘राखी‘ नाम से बल्कि ‘रक्षाबन्धन‘ नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं।
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5 Comments

  1. बहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙂 🙂

  2. धन्यवाद। आप मेरी नवीन पोस्ट को actualpost.com पर भी पढ़ सकते है। वैसे आपने मेरा नया ब्लॉग पढ़ा मुझे काफी अच्छा लगा।

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